शनि जयंती | वट सावित्री व्रत
शनि जयंती | वट सावित्री व्रत
तिथि आरम्भ : 21 मई को रात्रि 9:35 पर
तिथि समाप्त : 22 मई को रात्रि 11:08 पर
शनि जयंती:
वट सावित्री व्रत: विधि एवं संक्षेप कथा
त्रयोदशी के दिन वट वृक्ष के नीचे स्त्रियाँ व्रत संकल्प करती हैं फिर यथा-शक्ति उपवास करके अमावस के दिन बांस की टोकरी में सत्यवान -सावित्री की मूर्ती या फोटो की स्थापना करके वटवृक्ष के नीचे यमराज एवं बृह्मा जी की पूजा करते हैं। वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय 108 बार सूत "नमो वैवस्तताय " मत्रोच्चारण करते हुए लपेटा जाता है। अंत में देवी सावित्री को " अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वम् मम सुब्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तु ते " मंत्र से अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद वट वृक्ष की जड़ो में पानी डालने का विधान है।
कथा कुछ इस प्रकार है : राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान का वरन किया था जिसकी मृत्यु विवाह के एक वर्ष पश्चात होती थी निश्चित समयावधि पश्चात जब यमराज सत्यवान का सूक्ष्म शरीर लेकर चले तब सावित्री भी उनके साथ चल पड़ी और अपनी दृढ़ता से यमराज को प्रसन्ना करके सावित्री ने अपने अंधे सास-ससुर के लिए दृष्टि, पति का जीवन और अपने लिए सौ पुत्र प्राप्त किये।
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