चैत्र नवरात्र | वासंतिक नवरात्र
( 6 अप्रैल से 14 अप्रैल 2019 )
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
घट स्थापना मुहूर्त : 6 अप्रैल को सुबह 6:31 से 7:46 तक
नवरात्र व्रत पारण : 14 अप्रैल को
महत्व :
आज के दिन से वासंतिक नवरात्र आरम्भ होते हैं आज ही से नवदुर्गा पूजन के लिए निर्धारित शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करते हैं तथा भक्त जन नवरात्र के व्रत भी आरम्भ करते हैं ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवीन सम्वत प्रारम्भ होता है। माना जाता है सतयुग का आरम्भ भी इसी दिन से हुआ था तथा बृह्मा जी ने इसी दिन से सृष्टि आरम्भ की थी। "चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा संसर्ज प्रथमे अहनि" (बृह्म पुराण ) ।संभवतः इसी कारण से इसे स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है। आज के दिन किये जाने वाले दान जप के शुभ प्रभावों से वर्ष भर धन सम्पदा एवं सुख शान्ति बनी रहती है। सम्वत 2076 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चांद्र नामक नया संवत्सर आरम्भ होगा।
एक कथा के अनुसार भगवान् नारायण का पहला अवतरण अवतरण मत्स्यावतार के रूप में इसी तिथि से हुआ था। बृह्मा जी की पूजा हमेशा तथा हर जगह नहीं होती लेकिन आज के दिन बृह्मा जी को प्रतिष्ठित करने का विशेष विधान है।
घट स्थापना एवं पूजन विधि :
सर्व प्रथम सुबह स्नानादि के बाद स्थापना स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है तथा बैठ कर प्रथम पूज्य गणेश भगवान् की पूजा करते हैं, तथा सभी देवताओ का आवाह्न किया जाता है। कलश पूजन में पांच प्रकार के पत्तो से कलश सजाते है तथा कलश में हल्दी को गांठ, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा इत्यादि रखते हैं। कलश के नीचे बालू की बेदी बना लेते हैं तथा उसमे जौ बोई जाती है जो की धन-धान्य देने वाली माता अन्नपूर्णा की पूजन विधि होती है। इसके बाद माँ दुर्गा की मूर्ती स्थापना करते हैं तथा रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से माता का श्रृंगार करते हैं तथा हवन कुंड को प्रज्ज्वलित करते हैं तथा हवं सामग्री डालते हैं, तथा अखंड ज्योति जलाते है जो व्रत पूर्ण होने तक जलाये रखनी होती है उसके बाद मिठाई फल इत्यादि का भोग लगाते हैं और दुर्गा चालीसा तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ करते हैं। व्रत पूर्ण वाले दिन हलवे पूरी का भोग लगाया तथा उसी से अन्नाहार करते हैं।
आज के दिन पूजन विशेष में बृह्मा जी की मूर्ती स्थापना भी करते हैं और बृह्माजी का मन्त्रावाहन करके षोडशोपचार पूजन किया जाता है तथा वर्ष के शुभ होने की कामना की जाती है।
प्रतिपदा से नवमी तक विष्णु , शिव तथा माँ दुर्गा के समक्ष नित्य ज्योति जलाकर दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं।
प्रतिपदा से नवमी तक नीम की कडुवी पत्तिया तथा पुष्प का चूर्ण बनाकर उसमे हींग , कालीमिर्च , सेंधानमक , जीरा , अजवाइन तथा शक्कर बराबर मात्रा में मिलाकर भोग लगाकर स्वयं ग्रहण करने से वर्षभर आरोग्यता बानी रहती है तथा रक्तविकार , कुष्ठ रोग इत्यादि का भय नहीं रहता।
नीचे 9 देवियो के अलग अलग मंत्र तिथि के साथ दिए गए हैं तिथि विशेष पर यह मंत्र उच्चारित करें।
आज के दिन पूजन विशेष में बृह्मा जी की मूर्ती स्थापना भी करते हैं और बृह्माजी का मन्त्रावाहन करके षोडशोपचार पूजन किया जाता है तथा वर्ष के शुभ होने की कामना की जाती है।
प्रतिपदा से नवमी तक विष्णु , शिव तथा माँ दुर्गा के समक्ष नित्य ज्योति जलाकर दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं।
प्रतिपदा से नवमी तक नीम की कडुवी पत्तिया तथा पुष्प का चूर्ण बनाकर उसमे हींग , कालीमिर्च , सेंधानमक , जीरा , अजवाइन तथा शक्कर बराबर मात्रा में मिलाकर भोग लगाकर स्वयं ग्रहण करने से वर्षभर आरोग्यता बानी रहती है तथा रक्तविकार , कुष्ठ रोग इत्यादि का भय नहीं रहता।
नीचे 9 देवियो के अलग अलग मंत्र तिथि के साथ दिए गए हैं तिथि विशेष पर यह मंत्र उच्चारित करें।
प्रथमा तिथि : 6 अप्रैल
प्रथमा तिथि आरम्भ : 5 मार्च शाम 2:20 पर
प्रथमा तिथि समाप्त : 6 अप्रैल दोपहर 3:23 पर

द्वितीया तिथि : 7 अप्रैल
द्वितीया तिथि आरम्भ : 6 अप्रैल दोपहर 3:23 पर
द्वितीया तिथि समाप्त : 7 अप्रैल शाम 4:01 पर

तृतीया तिथि : 8 अप्रैल
तृतीया तिथि आरम्भ : 7 अप्रैल शाम 4:01 पर
तृतीया तिथि समाप्त : 8 अप्रैल शाम 4:16 पर
तृतीया तिथि समाप्त : 8 अप्रैल शाम 4:16 पर
चतुर्थी तिथि : 9 अप्रैल
चतुर्थी तिथि आरम्भ : 8 अप्रैल शाम 4:16 पर
चतुर्थी तिथि समाप्त : 9 अप्रैल शाम 4:07 पर
चतुर्थी तिथि समाप्त : 9 अप्रैल शाम 4:07 पर
पंचमी तिथि आरम्भ : 9 अप्रैल शाम 4:07 पर
पंचमी तिथि समाप्त : 10 अप्रैल दोपहर 3:36 पर
षष्ठी तिथि आरम्भ : 10 अप्रैल दोपहर 3:36 पर
षष्ठी तिथि समाप्त : 11 अप्रैल दोपहर 02:42 पर
सप्तमी तिथि आरम्भ : 11 अप्रैल दोपहर 02:42 पर
सप्तमी तिथि समाप्त : 12 अप्रैल दोपहर 01:24 पर
सप्तमी तिथि समाप्त : 12 अप्रैल दोपहर 01:24 पर
अष्टमी तिथि आरम्भ : 12 अप्रैल दोपहर 01:24 पर
अष्टमी तिथि समाप्त : 13 अप्रैल सुबह 11:41 पर

नवमी तिथि : 14 अप्रैल
नवमी तिथि आरम्भ : 13 अप्रैल सुबह 11:41 पर
नवमी तिथि समाप्त : 14 अप्रैल सुबह 09:36 पर
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