होलिका दहन

होलिका दहन

होलिका दहन



   

होलिका दहन :

आज के दिन सवेरे स्नानादि करने के बाद होलिका दहन स्थल पर जलशुद्धि करके वहा काष्ठ , उपले आदि इकट्ठे किये जाते हैं।  शाम में गीत संगीत के साथ लोही स्थान पर उत्तरामुखी बैठकर संकल्प किया जाता है संकल्प मन्त्र इस प्रकार है।  

 "मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य सर्वापच्छांतिपूर्वक सकलशुभफल प्राप्तयर्थम ढुँढाप्रीतिकामनाया होलिकापूजनम करिष्ये। "


तत्पश्चात बाहर से अग्नि मंगाकर होलिका जलाते हैं गंध पुष्प अक्षत जल आदि से अग्नि पूजन करते हैं इसके बाद तीन परिक्रमा करके अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद होली का डंडा हटाकर उसे जल से ठंडा करते हैं तथा बीच में बची आग से जौं-गेंहू की बाली तथा चने के झाड़ को सेंककर यज्ञ की भष्म सहित घर ले आते हैं जहा आँगन को गोबर से लीपकर उसपर नवान्न (आग से सेकी हुयी बली तथा चने का झाड़) रखते हैं।इसे नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है। हंसी-ठिठोली के बाद गुण पकवान खाने की रीति है।  
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वैदिक काल के बाद इसीदिन से प्रहलाद की बुआ होलिका के जलने की कथा भी जुड़ गयी तथा कुछ लोग इसी तिथि पर भगवान् शंकर द्वारा कामदेव के भष्म होने को भी जोड़ते हैं।  

देश में कई जगह फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक मनाते हैं यह आठ दिनों का पर्व होता है।  आज के दिन सभी लोग हर किसी से हास परिहास करने को स्वतंत्र रहते हैं जिससे मन के सभी कुंठा रुपी विकार दूर होते हैं।  


चैतन्य महाप्रभु जयंती : 

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कृष्ण नाम महामंत्र : 
हरे कृष्णा हरे कृष्णा,  कृष्णा कृष्णा हरे हरे।  
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।  

आज ही के दिन भगवान् कृष्ण के भक्त अवतार श्री चैतन्य महाप्रभु की जयंती मनाई जाती है । गौड़ीय सम्प्रदाय की स्थापना चैतन्य महाप्रभु ने की थी जिसमे उनके द्वारा दिए गए कृष्ण नाम महामंत्र आज पश्चिमी देशो में भी प्रसिद्द है।  


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