गोविन्द द्वादशी | नरसिंह द्वादशी
परशुराम द्वादशी | मनोरथ द्वादशी
फाल्गुन शुक्ल द्वादशी (18 मार्च 2019)
परशुराम द्वादशी | मनोरथ द्वादशी

तिथि आरम्भ : 17 मार्च रात्रि 8:51 पर
तिथि समाप्त : 18 मार्च सायं 5:44 पर
गोविन्द द्वादशी मनोकामनाओ को पूरा करने वाली द्वादशी है इसलिए इसको मनोरथ द्वादशी भी कहते हैं। केशव इत्यादि नामो से भगवान् को याद करने से स्वर्ग प्राप्ति होती है और समस्त पापों का नाश होता है। आज के दिन भगवान् कृष्ण के मंदिर सजाये जाते हैं जगन्नाथ पूरी , द्वारका तथा अन्य मंदिर। आज भगवान् विष्णु तथा माता गंगा के नाम मन्त्र जाप किये जाते हैं। गोविन्द द्वादशी के दिन भगवान् विष्णु को पुण्डरीकाक्ष के रूप में पूजते हैं। पुण्डरीकाक्ष शब्द का अर्थ है - जिसके नेत्र कमल पुष्प जैसे सुन्दर हो ,जो सभी के ह्रदय में विद्यमान है अर्थात वैकुण्ठ धाम के स्वामी विष्णु | गोविन्द द्वादशी को नरसिंह द्वादशी तथा परशुराम द्वादशी के नाम से भी जानते हैं।
नरसिंह द्वादशी :
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नरसिंह द्वादशी के रूप में भी मनाते हैं, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् विष्णु के अवतार नरसिंह का प्राकट्य खम्बे को चीर कर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए हुआ था। इस दिन भगवान् नरसिंह का पूजन करने से समस्त पापों का नाश होता है।

विधि एवं महत्त्व:
यह व्रत परशुराम जी की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। आंवले के वृक्ष के नीचे स्थापित आमलकी एकादशी के दिन स्थापित परशुराम जी की मूर्ती की षोडशोपचार पूजन के बाद उनकी अंग पूजा की जाती है। फिर श्री राम के नाम मन्त्र से उनके फरसे की पूजा की जाती है। उसके बाद मन्त्र पढ़कर अर्घ्य देते है तथा आंवले की जड़ो में जल देते हैं। फिर आंवले के वृक्ष का अभिषेक करते हैं तथा ८, २८ या १०८ बार उसकी प्रदक्षिणा की जाती है। फिर मूर्ती को दान में देकर ब्राह्मणो को भोजन कराते हैं तथा स्वयं भी व्रत पारण करते हैं।
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