उत्पन्ना एकादशी | मार्गशीष कृष्ण एकादशी
(3 दिसंबर 2018)
तिथि आरम्भ : 2 दिसंबर दोपहर 2:00 बजे
तिथि समाप्त : 3 दिसंबर दोपहर 2:00 बजे
पारण का समय : 4 दिसं.सुबह 7:03 से 9:06
तिथि समाप्त : 3 दिसंबर दोपहर 2:00 बजे
पारण का समय : 4 दिसं.सुबह 7:03 से 9:06
महत्व:
देवोत्थान एकादशी के बाद पड़ने वाली एकादशी और मार्गशीष माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं, इस दिन भगवान् कृष्ण की पूजा का विधान है।इस दिन भगवान् विष्णु के शरीर से उत्पन्न कन्या के द्वारा मुर नामक राक्षस का वध हुआ था, इस दिन एकादशी माता के जन्म के बाद ही भगवान् विष्णु के वरदान स्वरुप एकादशी व्रत प्रारम्भ हुए। इसी दिन से एकादशी के व्रत आरंभ किये जाते हैं। इसे वैतरणी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन व्रत करने से पूर्व तथा वर्तमान जन्म के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
देवोत्थान एकादशी के बाद पड़ने वाली एकादशी और मार्गशीष माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं, इस दिन भगवान् कृष्ण की पूजा का विधान है।इस दिन भगवान् विष्णु के शरीर से उत्पन्न कन्या के द्वारा मुर नामक राक्षस का वध हुआ था, इस दिन एकादशी माता के जन्म के बाद ही भगवान् विष्णु के वरदान स्वरुप एकादशी व्रत प्रारम्भ हुए। इसी दिन से एकादशी के व्रत आरंभ किये जाते हैं। इसे वैतरणी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन व्रत करने से पूर्व तथा वर्तमान जन्म के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
पूजन विधि : सुबह स्नानादि के पश्चात भगवान् कृष्ण का षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन करके उत्पन्ना एकादशी की कथा पढ़नी चाहिए और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस व्रत में भगवान् को भोग केवल फलों का ही लगाया जाता है।
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