देवोत्थान एकादशी | भीष्म पंचक | तुलसी विवाह

देवोत्थान एकादशी | भीष्म पंचक | तुलसी विवाह

देवोत्थान एकादशी | भीष्म पंचक | तुलसी विवाह 
(19 नवंबर 2018)





तिथि आरम्भ = 18 नवंबर को दोपहर 01:34 बजे
तिथि समाप्त = 19 नवंबर को दोपहर 02:30 बजे
पारण समय = 20 नवं. सुबह 06:50 से 9:00 तक 



महत्व: 

         कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान एकादशी, हरिप्रबोधिनी एकादशी, तुलसी विवाह एवं भीष्मपंचक एकादशी के रूप में मनाई जाती है।  
       देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान् श्री हरि के जागने की परिकल्पना है। कहते हैं आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान् विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं और  आज  के दिन जागते हैं। भगवान् विष्णु के जागने के बाद सभी मांगलिक कार्य आरम्भ हो जाते हैं। सुबह से पूजा पाठ और भजन कीर्तन किये जाते हैं । वामनावतार में आज ही के दिन राजा बलि ने वामन भगवान को रथ में बिठाकर स्वयं रथ खींचा था । आज शोभायात्रा में श्रद्धालु स्वयं रथ खींचते हैं । इसे देवप्रबोधिनी , देवउठनी एकादशी इत्यादि नामों से भी जानते हैं।  
     भीष्म पंचक एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों का व्रत है इसमें बृह्मचर्य का धारण करके "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का पाठ करते हैं, और पांच दिनों तक भगवान्  कृष्ण का पूजन किया जाता है।  इस व्रत के सन्दर्भ में भगवान् कृष्ण ने भीष्म से कहा था जो भी इस व्रत को करेगा वो जीवन में सभी सुख भोगकर अन्ततः मोक्ष प्राप्त करेगा।  
       आज के दिन शालिग्राम जी और तुलसी विवाह भी किया जाता है तथा विवाह के मंगल गीत गाये जाते हैं। ऐसा मानते हैं जो भी कार्तिक मास में शालिग्राम जी के साथ तुलसी का विवाह करते हैं उनके पिछले जन्मो के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।  


पूजा विधान : 

तुलसी विवाह में ईख का मंडप तैयार करके तुलसी जी के गमले को सजाकर इसके नीचे रखा जाता है और तुलसी पर सभी तरह का सुहाग का सामान चढ़ाते हैं और षोडशोपचार पूजन किया जाता हैं।  शालिग्राम जी के विग्रह को तुलसी जी के साथ सात फेरे करवाए जाते हैं और विवाहादि के मंगल गीत गाये जाते हैं।  

भीष्म पंचक पूजन विधान में "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मन्त्र से भगवान् कृष्ण का पूजन किया जाता है और लगातार पांच दिनों तक के लिए घी का दीपक जलाया जाता है।  पांच दिनों तक की अलग अलग पूजन विधियों में पहले दिन भगवान् के विग्रह के ह्रदय का पूजन कमल के पुष्पों से , दूसरे दिन कटिप्रदेश का पूजन बेल पत्रों से, तीसरे दिन केवड़े के पुष्पों से घुटनो की, चौथे दिन चमेली के पुष्पों  से पावों की, पांचवे दिन तुलसी की मंजरियों से पूरे शरीर का पूजन किया जाता है।  

















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