पूजन समय : सुबह 10:55 से दोपहर 1:11 तक
अविघ्नकर चतुर्थी:
महाराज सगर ने अश्वमेघ के समय , त्रिपुर असुर युद्ध के समय शिव जी ने तथा समुद्रमंथन में विघ्न ना होने के लिए यह व्रत स्वयं भगवान् नारायण ने किया था।
विधि:
आज के दिन गणेश भगवान् की मूर्ती का षोडशोपचार से पूजन कर तिलके पदार्थो का भोग लगाया जाता है। तिल से हवन करते हैं तथा पांच विभिन्न वस्तुओं के पात्रो में तिल भरकर ब्राह्मणो को दान दिया जाता है। उन्ही तिल की वस्तुओ का भोजन करा कर स्वयं भी उसी भोजन को करते हैं। प्रत्येक शुक्ल चतुर्थी चार मास तक यह व्रत करके पांचवे माह , आषाढ़ में यह मूर्ती ब्राह्मण को दान में दे दी जाती है। इससे भी विघ्न दूर होते हैं।
मनोरथ चतुर्थी :
अगर आज से प्रारम्भ करके पूर्ण वर्ष यह नक्त व्रत(निराहार ) प्रत्येक शुक्ल चतुर्थी को किया जाए तथा षोडशोपचार पूजन किया जाये तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा मनोरथ सिद्ध होते हैं , इसलिए इसे मनोरथ चतुर्थी भी कहते हैं।