रक्षाबंधन मुहूर्त विशेष ११/ अगस्त/२०२२

रक्षाबंधन मुहूर्त विशेष ११/ अगस्त/२०२२

 रक्षाबंधन मुहूर्त विशेष



मुहूर्त विशेष ११/ अगस्त/२०२२  : 

रक्षासूत्र बाँधने का मुहूर्त : सायंकाल 8:53 से 9:50  
समय :
57 मिनट
पूर्णिमा तिथि आरम्भ :
11 अगस्त को प्रातः 10:39 बजे 
पूर्णिमा तिथि समाप्त :
12 अगस्त प्रातः 7:06 बजे 
भद्रा :
11 अगस्त  प्रात 10:39 से सायं 8:53 तक


पाताल लोक की भद्रा के अशुभ प्रभाव नही होते इसलिए मतांतर से यह पर्व गुरुवार को दिन में 10:39 के बाद कभी भी मना सकते है।


11 अगस्त -प्रदोष काल :
सायं 7:11 से 9:50 तक 
भद्रा पुच्छ :
सायं 5:18  से 6:20 तक 
भद्रा मुख :
सायं 6:20 से 8:02 तक 

  • रक्षाबंधन का पवित्र पर्व भद्रारहित अपराह्नव्यापिनी पूर्णिमा में करने का शास्त्र-विधान है।  पहले दिन  अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा हो तथा अगले दिन उदयकालिक पूर्णिमा त्रिमुहूर्त व्यापिनी ना हो तो पहले दिन (अपराह्न व्यापिनी ) पूर्णिमा पर भद्रा समाप्त होने के बाद प्रदोष काल में रक्षाबंधन करना चाहिए।  

  • 11 -अगस्त-2022 को प्रदोष काल सायं 7:11 से 9:50 तक है एवं भद्रा प्रात 10:39 से सायं 8:53 तक है , अतः 8:53 पर भद्रा समाप्ति के बाद के शेष प्रदोष काल जो कि 9:50 सायं तक है,यह 57 मिनट का समय रक्षासूत्र बाँधने का उपयुक्त समय है।  

  • धर्मनिष्ठ लोग भद्रा रहित प्रदोष काल जोकि (सायंकाल 8:53 से 9:50)57 मिनट  का है , इसी समय में रक्षाबंधन मनावें , परन्तु अति आवश्यक परिस्थितिवश जिन लोगो को यात्रा की सुविधा ना उपलब्ध हो , नौकरी काम काज में लगे लोग , फौजी , असुविधा वश विवश लोग ऊपर दिए भद्रा पुच्छ काल(सायं 5:18  से 6:20 तक) में भी रक्षाबंधन मना सकते हैं , जिसमे भद्रा मुख जो की सायं 6:20 से 8:02 तक है इस समय का त्याग कर दें।  

  • हिमांचल , पंजाब इत्यादि जगह पर उदयकालिक पूर्णिमा पर ही रक्षाबंधन मनाने का प्रचलन है अतः इन जगह के लोग 12 अगस्त शुक्रवार के दिन त्रिमुहूर्त-न्यून पूर्णिमा को प्रातः 7:06 बजे से पूर्व मनाएंगे। विशेष परिस्थियों में यह भी एक विकल्प है। 

  •  मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार भद्रा का वास मृत्युलोक में है तो मांगलिक कार्य नहीं करते हैं लेकिन 11 अगस्त को भद्रा का वास पाताल लोक में रहेगा। भद्रा जिस लोक में निवास करती है, वहीं उसका असर होता है इसलिए भद्रा का असर पृथ्वी पर नहीं होगा

  • भद्रा जिस लोक में रहती है, वहीं प्रभावी रहती है। इसी प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी वह पृथ्वी पर असर करेगी अन्यथा नहीं। शास्त्र अनुसार जब भद्रा स्वर्ग या पाताललोक में होगी तब वह शुभ फलदायी होती है। जय मार्तण्ड पंचांग अनुसार भी जब भद्रा पाताल लोक में रहती है तो शुभ होती है। 

  • कई विद्वानों का मत है कि भद्रा किसी लोक की हो रक्षाबंधन के लिए त्याज्य देनी चहिये, ऐसे में लोग भद्रा को त्यागकर मुहूर्त विशेष में राखी बंधन का कार्यक्रम करें । लेकिन इस बार की भद्रा पाताललोक की है जिसका कोई अशुभप्रभाव नही होगा, अतैव गुरुवार को प्रातः 10:39 के बाद यह पर्व कभी भी मना सकते है । 

  • जिस दिन पूर्णिमा उदयकालिक त्रिमुहूर्त व्यापिनी ना हो तब पिछले दिन अपराह्न व्यापिनी तिथि में प्रदोष काल में रक्षाबंधन मनाना युक्त माना गया है ।


महत्त्व , विधि एवं कथा : 

    हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहारों में एक त्यौहार है रक्षाबंधन यह श्रावण पूर्णिमा  को मनाया जाता है।  इसमें बहने अपने भाई के हाथ पर राखी बांधती हैं और माथे पर तिलक लगाकर उनके जीवन मे हर समय विजयी होने की कामना करती हैं और भाई अपनी बहन को हर समय रक्षा का वचन देते हैं।
    एक कथानुसार भगवान् कृष्ण की हाथ पर लगी चोट से बहते रक्त को देखकर द्रौपदी ने अपनी साडी से कपड़ा फाडकर भगवान् कृष्ण के हाथ में बांधा और रक्त को बहने से रोक लिया इसी बंधन के ऋणी भगवान् कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा दुःशासन द्वारा द्रौपदी के  चीरहरण के समय की थी।  
    एक मुख्य कथानुसार एक बार बारह वर्षों तक देवता राक्षसों से युद्ध जीत ना सके और दैत्यराज ने  तीनो लोकों पर कब्जा किया और स्वयं को भगवान् घोषित कर दिया।  फिर गुरुदेव बृहस्पत ने श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल रक्षा का विधान नियुक्त किया जिसमे इंद्राणी ने इंद्रा के हाथ पर रक्षासूत्र बाँध कर इस रक्षा विधान को संपन्न किया और इंद्रा को युद्ध पर भेजा जिसके फलस्वरूप इंद्रा विजयी हुए तब से यह त्यौहार रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है जिसमे एक रेशम के कपडे में सरसों , सोना , केसर, चन्दन अक्षत और दूर्वा रखकर उसे एक रंगीन सूत की डोरी में बांधा जाता है जिसे रक्षा-सूत्र कहते हैं इसकी पूजा करके राजा, मंत्री, शिष्य इत्यादि की कलाई पर बांधा जाता है।  आज के समय यह रक्षासूत्र केवल बहने ही अपने भाई की दाहिने हाथ की कलाई पर बांधती हैं और भाई अपनी बहनो को रक्षा का वचन देते हैं।  

    श्रावण पूर्णिमा के दिन ही मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की अज्ञानवश ह्त्या हो जाने के प्रायश्चित में राजा दशरथ ने व्रत रखा था जिससे उनके दुःख कुछ कम हुए थे।वेदाभ्यासी छात्रों के लिए आज का दिन वेदपारायण  शुभारम्भ करने तथा ऋषियों के तर्पण का होता है।  आज ही के दिन हयग्रीव तथा अगस्त्य ऋषि के अवतरण की चर्चा की जाती है।  

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