महाशिवरात्रि | फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी
(4 मार्च 2019)
तिथि आरम्भ: 4 मार्च सायं 4:28 पर
तिथि समाप्त: 5 मार्च सायं 7:08 पर
शिवरात्रि व्रत 4 मार्च को
निशीथ काल पूजा समय= 4 मार्च रात्रि 12:08 से रात्रि 12:57 तक
मुहूर्त अवधि = 49 मिनट
5 को पारण समय = सुबह 6:46 से दोपहर 3:26
तिथि समाप्त: 5 मार्च सायं 7:08 पर
शिवरात्रि व्रत 4 मार्च को
निशीथ काल पूजा समय= 4 मार्च रात्रि 12:08 से रात्रि 12:57 तक
मुहूर्त अवधि = 49 मिनट
5 को पारण समय = सुबह 6:46 से दोपहर 3:26
4 मार्च रात्रि चारो प्रहर की पूजा का समय
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय: सायं 6:19 से रात्रि 9:26रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय: रात्रि 9:26 से रात्रि 12:33
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय: रात्रि 12:33 से रात्रि 03:39
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय: रात्रि 3:39 से सुबह 6:46
तिथि महत्व :
फाल्गुन कृष्ण-चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः। ।
ईशान संहिता के अनुसार इसी अर्धरात्रि(निशीथ) में कोटि सूर्य की प्रभा के समान शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ। चतुर्दशी तिथि को भगवान् शिव की पूजा की जाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि को विशेषरूप से पूजन का विधान है। अमावस्या की रात्रि चंद्र सूर्य के अभाव में पिशाचिनी शक्तिया अपनी चरम पर होती हैं, इसीलिए चतुर्दशी रात्रि को भगवान् शिव की पूजा करके उनको नियंत्रित किया जाता है।शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन की गई पूजा एक वर्ष की पूजा के समान होती है और महाशिवरात्रि के दिन हुए अन्य विशेष कार्य:
१. महादेव दधीचि के आवाह्न पर आए थे
२. चन्द्र को अभय दान दिया था
३. महादेव स्वयं दक्ष के श्राप से मुक्त हुए थे
४. पार्वती जी से विवाह हुआ था
५. सती के पिंडो की स्थापना के लिए ६४ स्थानों पर शिव जी एकसाथ प्रकट हुए थे
यह श्लोक बहुत सुंदर है जिसमे भगवान् शंकर को बार-बार नमस्कार करके कहा जाता है कि हे प्रभु, हम आपका जिसमे भगवान् शंकर को बार बार नमस्कार करके कहा जाता है , हे प्रभु हम आपका यह शिवरात्रि व्रत करना चाहते हैं , हे देवेश्वर आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न संपन्न हो जाए तथा काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा ना दे। इसके बाद घर आकर सारा दिन पंचाक्षरी (नमः शिवाय ) का जाप किया जाता है।
१. महादेव दधीचि के आवाह्न पर आए थे
२. चन्द्र को अभय दान दिया था
३. महादेव स्वयं दक्ष के श्राप से मुक्त हुए थे
४. पार्वती जी से विवाह हुआ था
५. सती के पिंडो की स्थापना के लिए ६४ स्थानों पर शिव जी एकसाथ प्रकट हुए थे
पूजन विशेष :
शिवपुराण अनुसार आज के दिन प्रातःकाल की संध्या आदि करके माथे पर भस्म का त्रिपुण्ड तिलक करके गले में रुद्राक्ष की माला धारणकर शिवालय जाकर भगवान् शंकर का विधिपूर्वक पूजन करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। संकल्प करने के लिए सामान्य विधि है , हाथ में जल , अक्षत , पुष्प , विल्वपत्र तथा चन्दन लेकर मन्त्र पढ़कर उसे छोड़दिया जाता है बाद में पढ़ने का मन्त्र है, "देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तुते। कर्तुरमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।। तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति। कामाद्याः शत्रवो मां वै पीड़ा कुर्वन्तु नैव हि।।"यह श्लोक बहुत सुंदर है जिसमे भगवान् शंकर को बार-बार नमस्कार करके कहा जाता है कि हे प्रभु, हम आपका जिसमे भगवान् शंकर को बार बार नमस्कार करके कहा जाता है , हे प्रभु हम आपका यह शिवरात्रि व्रत करना चाहते हैं , हे देवेश्वर आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न संपन्न हो जाए तथा काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा ना दे। इसके बाद घर आकर सारा दिन पंचाक्षरी (नमः शिवाय ) का जाप किया जाता है।
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