श्री कृष्ण जन्माष्टमी | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी | उमा महेश्वर व्रत

श्री कृष्ण जन्माष्टमी | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी | उमा महेश्वर व्रत

श्री कृष्ण जन्माष्टमी | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी |
(2 और 3 सितंबर 2018)


अष्टमी तिथि आरम्भ : 2 सितम्बर को रात 8:48 पर  
अष्टमी तिथि समाप्त : 3 सितम्बर को शाम 7:20 पर
 रोहिणी नक्षत्र: 2 सितंबर रात्रि 8:49 से 3 सितंबर को रात्रि 8:06 तक 
निशीथ काल पूजा समय: 2 सितंबर रात्रि 11:26 से रात्रि 12:12 तक 

अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र दोनों ही रात्रि को जब मिलें तब उस दिन व्रत रखना मान्य होता है।  अतः व्रत 2 को रखा जाएगा एवं पारण 3 को नीचे दिए गए समय के अनुसार होगा ।  

पारण समय : 3 सितम्बर को शाम 8:06 के बाद (तिथि अनुसार)
अन्य पारण समय: 3 सितम्बर सुबह 5:55 के बाद(व्रत नियमानुसार ) 
अन्य पारण समय: 2 सितम्बर मध्य रात्रि 12:34 के बाद(आधुनिक प्रचलन में )
(शास्त्रानुसार पारण अगले दिन पूर्णतया तिथि बीत जाने पर अथवा व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है लेकिन कई जगह पर पारण रात्रि पूजन के बाद ही कर लिया जाता है )


तिथि विशेष : 
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि 12 बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव जी की पत्नी देवकी के गर्भ से 16 कलाओ युक्त भगवान् कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन विशेष तौर से मंदिरों की सजावट की जाती है। कृष्णावतार के उपलक्ष में झांकिया सजाई जाती है, कृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता है। सभी व्रतधारण इच्छुक भक्त सुबह निम्नलिखित मंत्रोच्चारण से व्रत संकल्प लेते हैं।
 ("ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये") तथा दोपहर में काले तिलों के जल से स्नान करके देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाते हैं। षोडशोपचार से देवकी , वासुदेव , वसुदेव , बलदेव , नन्द , यशोदा तथा लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। भक्तगण रात्रि 12 बजे तक जागकर भजन इत्यादि करते है और व्रत धारी महिलाये और पुरुष 12 बजे तक व्रत रखते हैं तत्पश्चात 12 बजे सभी भक्त भगवान कृष्ण के जन्म की खबर को सब जगह फैलाते हैं और भगवान् की आरती करके प्रसाद वितरण करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं तथा सुबह अष्टमी तिथि बीत जाने के बाद व्रत खोलते हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत होता है सभी को करना चाहिए। 
     उमामहेश्वर एवं कालाष्टमी के व्रत एक ही हैं जो की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को ही किये जाते हैं , इस दिन उमा महेश्वर की पूजा शाम में की जाती है यदि इस तिथि पर मृगशिरा नक्षत्र होता है तो इसे कालाष्टमी कहते हैं इसमें शिव पूजन का विशेष महत्व है।

 पूजा विधि :
रात्रि 12 बजे निशीथ काल पूजा समय में भगवान् का जन्म कराया जाता है जिसमे नाल वाले खीरे को बीच से इस तरह काटकर भगवान् का जन्म कराया जाता है जैसे बच्चे की नाल प्रसव के समय काटी जाती है , इस खीरे को सामान्य प्रसाद में मिलाकर बांटा जाता है एवं भगवान् के जन्म का उद्घोष जगह जगह ये कहकर किया जाता है "हाथी घोडा पालकी , जय कन्हैया लाल की।"लड्डू गोपाल को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और कपडे पहना झूले पर बिठाकर झूला झुलाया जाता है माखन मिश्री फल इत्यादि का भोग लगाया जाता है तत्पश्चात प्रसाद वितरण होता है।  



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