भाद्रपद कृष्ण तृतीया | कजरी तीज | बूढी तीज
(29 अगस्त 2018)
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज का पर्व मनाया जाता हैं इसे बूढी तीज भी कहते हैं। यह पर्व उत्तर प्रदेश के बनारस तथा मिर्जापुर में विशेष रूप से मनाया जाता है।
कजरी (विरह गीत) की प्रतिद्विन्दिता भी होती हैं।प्रायः लोग नावों पर चढ़कर कजरी गीत गाते हैं।यह बर्षा ऋतु का एक विशेष राग है। ब्रज के मल्हारों की भाँति यहाँ पर यह प्रमुख बर्षा गीत माना जाता है।इस दिन महेश्वरी वैश्य गेहू , चने ,जौं , तथा चावल आदि के सत्तू में घी , मेवा इत्यादि डालकर विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते हैं। इसलिए इसे सातुड़ी तीज या सतवा तीज भी कहते हैं।
इस दिन झूला भी पड़ता है। घरो में पकवान ,मिष्ठान बनाया जाता है। ग्रामीण अंचलों में इसे तीजा कहते हैं। ग्रामीण बालाएँ तथा वधुएँ हिंडोले पर बैठकर कजरी गीत गाती हैं। बर्षा ऋतु में यह गीत पपीहा, बदलों तथा पुरवा हवाओं के झोकों से बहुत प्रिय लगता है।
इस दिन व्रत रखकर गायों के लिये आटे की सात लोई बनाकर खिलाते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। वधुएँ चीनी और रुपयों का बायना निकालकर सासुजी को देकर उनके चरण स्पर्श करती हैं।
कजरी (विरह गीत) की प्रतिद्विन्दिता भी होती हैं।प्रायः लोग नावों पर चढ़कर कजरी गीत गाते हैं।यह बर्षा ऋतु का एक विशेष राग है। ब्रज के मल्हारों की भाँति यहाँ पर यह प्रमुख बर्षा गीत माना जाता है।इस दिन महेश्वरी वैश्य गेहू , चने ,जौं , तथा चावल आदि के सत्तू में घी , मेवा इत्यादि डालकर विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते हैं। इसलिए इसे सातुड़ी तीज या सतवा तीज भी कहते हैं।
इस दिन झूला भी पड़ता है। घरो में पकवान ,मिष्ठान बनाया जाता है। ग्रामीण अंचलों में इसे तीजा कहते हैं। ग्रामीण बालाएँ तथा वधुएँ हिंडोले पर बैठकर कजरी गीत गाती हैं। बर्षा ऋतु में यह गीत पपीहा, बदलों तथा पुरवा हवाओं के झोकों से बहुत प्रिय लगता है।
इस दिन व्रत रखकर गायों के लिये आटे की सात लोई बनाकर खिलाते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। वधुएँ चीनी और रुपयों का बायना निकालकर सासुजी को देकर उनके चरण स्पर्श करती हैं।
लेख आभार : आकृति सक्सेना
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