हरतालिका तीज | वाराह जयंती

हरतालिका तीज | वाराह जयंती

हरतालिका तीज | भाद्रपद शुक्ल तृतीया 
12 सितम्बर 2018 बुधवार 



तृतीया तिथि आरम्भ : 11 सितम्बर को शाम 6:05 पर 
तृतीया तिथि समाप्त : 12 सितम्बर को शाम 4:07 पर 
पूजा मुहूर्त : 12 सितम्बर को सुबह 6:00 से 8:27तक 

महत्व : 

स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला भाद्रपद शुक्ल तृतीया पर उमामहेश्वर का यह व्रत पतियों की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। तथा कुवारी लडकिया भी अचल सुहाग की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।कथाओं के अनुसार आज के ही दिन माता पार्वती और भगवान शिव का मिलन हुआ था।माता पार्वती ने वन में घोर तपस्या की थी जिसमे उनको बिना बताए घर से वन तक पहुचाने में उनकी सखी ने साथ दिया।(हरत=हरण + आलिका=सखी) सखी द्वारा हरण किये जाने के कारण इस व्रत का नाम हरतालिका पड़ा तथा भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत की महिमा स्वरूप बताया कि जो भी इस व्रत को करेगा उसे आपके समान ही अचल वर प्राप्त होगा। आज ही के दिन भगवान विष्णु ने तृतीय अवतार वाराह के रूप में अवतार लिया था और पृथ्वी की रक्षा की थी इसीलिए आज ही के दिन को श्री वाराह जयंती के रूप में भी मनाते हैं । 


पूजन विधि : 

इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर शंकर-पार्वती की बालू की मूर्ती बनाकर पूजन किया जाता है, व्रत संकल्प लेकर रात्रि मंगल गीतों के साथ जागरण किया जाता है। माता पार्वती को सुहाग का सामान चढ़ाते हैं तथा भगवान् शिव को धोती एवं अंगोछा , पूजन के बाद सुहाग सामग्री, धोती एवं अंगोछा ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है, तथा मीठे व्यंजन दिए जाते हैं।शाम को विशेष पूजन बाद ही व्रत खोल लिया जाता है, इस व्रत को करने से स्त्रियाँ पार्वती के समान सुख रमण करके शिवलोक जाती हैं।   


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