पुरुषोत्तम मास | ज्येष्ठ अधिक मास

पुरुषोत्तम मास | ज्येष्ठ अधिक मास

ज्येष्ठ अधिक मास आरम्भ
(16 मई 2018)  
अधिक मास | मल मास | पुरुषोत्तम मास
16 मई (बुधवार) से 13 जून (बुधवार) 

संक्रांति रहित मास "अधिक मास" के अतिरिक्त आधी-मास , मल मास तथा आध्यात्मिक रूप से अत्यंत पुण्यदायी होने के कारण इस महीने को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।  ज्योतिषीय गणनाओ के अनुसार हर वर्ष सौर मास और चंद्र मास में होने वाले 10 या 11 दिन के अंतर होने के कारण तीन वर्षो में लगभग 1 माह का सामंजस्य निर्धारित करने के लिए हमारे ऋषियों ने अधिक मास की व्यवस्था की।  सामान्यतः अधिक या मल मास कोई निंदनीय या वर्जनीय मास नहीं अपितु मनुष्य के निंदनीय पाप कर्मो को गंगाधारा में धोने वाला मास ही मल मास है।  भगवान् विष्णु ने इस अधिक मास को अपना स्ववामित्व देते हुए इसका नाम पुरुषोत्तम रखा।  भगवान् विष्णु की सादृश्यता के कारण यह मास अन्य सभी मासों की तुलना में सबसे अधिक पूज्यनीय एवं पवित्र माना जाता है एवं यह मास सभी मासों पर अधिपत्य रखता है।  इस मास में किये गए स्नान दान जप इत्यादि करने से लोगो के दुःख पाप कष्ट एवं रोग का निवारण हो जाता है। नित्यप्रति नियम संयम से भगवान् की पूजा अर्चना से अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है और मरने के बाद किसी भी प्रकार की अधोगति का भय नहीं रहता।  पुरुषोत्तम मास में जो लोग भगवान् विष्णु की पूजा करते हैं पुरुषोत्तम-माहात्म्य का पथ , व्रत दान इत्यादि करते हैं वो लोग मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं एवं भगवान् के गोलोक धाम का मार्ग सुनिश्चित करते हैं।    

वर्जित कार्य: 

इस विशेष माह में फलप्राप्ति के कामना से किये जाने वाले सभी प्रकार के कार्य पूर्णतया वर्जित होते हैं।  आशा-रहित होकर सभी कार्य किये जाने चाहिए।  ज्योतिषीय मतानुसार विवाह , यज्ञ , देव-प्रतिष्ठा , भूमि-संपत्ति खरीद , गाड़ी खरीदना , महादान, पहले कभी ना देखे हुए देव तीर्थो के गमन , नवगृह प्रवेश इत्यादि कार्य इस अधिक मास में नहीं करने चाहिए।  इसके अतिरिक्त नवगृह प्रवेश , काम्य व्रतारम्भ , नवीन वस्त्रादि धारण , व्रत-उद्यापन, स्वर्ण दान , गाय दान , नव यज्ञोपवीत , उपनयन , अष्टका श्राद्ध , द्वितीय वार्षिक श्राद्ध , उपाकर्मादि कर्मो के निष्पादन का निषेध माना गया है।  

करणीय (करने योग्य )कर्म:

जिस काम्य कर्मो के प्रयोग का आरम्भ अधिक मास से पहले ही हो चुका हो उसकी सम्पूर्ति इस माह में विहित होती है।  तीव्र ज्वर एवं प्राणधात रोग के निवारण के लिए रुद्रपूजा , अनुष्ठान , संतान जन्म के पश्चात अन्नप्रासन संस्कार , गंडमूल , जन्मदिन पूजन सम्बन्धी आवश्यक कर्म , नित्य पूजा , जप , दानादि किये जा सकते हैं।  

विशेष उपाय: 

भगवान् कृष्ण के निमित्त जो व्रत , उपवास , स्नान पूजन एवं दान का अक्षय फल प्राप्त होता है।  और व्रती के अभी प्रकार के अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं।  नित्यप्रति विष्णु सहस्त्र नाम , श्री विष्णु स्त्रोत, इत्यादि का पाठ फलदायी होता है। मास की समाप्ति पर स्नान , जप , पुरुषोत्तम पाठ एवं गुड़, गेहू , धृत , वस्त्र , मिष्ठान , केले , ककड़ी , मूली इत्यादि का दान करके भगवान् को तीन बार अर्घ्य देना चाहिए।  एवं भगवान् के निम्लिखित ३३ नामों का जाप करे- 1-विष्णुं 2-जिष्णुं 3-महाविष्णुं 4-हरिं 5-कृष्णं 6-अधोक्षजं 7-केशवं 8-माधवं 9-रामं 10-अच्युत्यं 11-पुरुषोत्तमम् 12-गोविंदम 13-वामनं 14-श्रीशं 15-श्रीकृष्णं 16-विश्वसाक्षिणम् 17-नारायणं 18-मधुरिपुं 19-अनिरुद्धं 20-त्रिविक्रमं 21-वासुदेवं 22-जगद्योनिं 23-अनन्तं 24-शेयशायिनम् 25-सकर्षणं 26-प्रद्युम्नं 27-दैत्यरिं 28-विश्वतोमुखं 29-जनार्दनं 30-धरावासं 31-दामोदरं 32-मघार्दनम् 33-श्रीपतिं च।  




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