श्रावण पूर्णिमा | रक्षाबंधन
महत्त्व , विधि एवं कथा :
हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहारों में एक त्यौहार है रक्षाबंधन यह श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें बहने अपने भाई के हाथ पर राखी बांधती हैं और माथे पर तिलक लगाकर उनके जीवन मे हर समय विजयी होने की कामना करती हैं और भाई अपनी बहन को हर समय रक्षा का वचन देते हैं।
एक कथानुसार भगवान् कृष्ण की हाथ पर लगी चोट से बहते रक्त को देखकर द्रौपदी ने अपनी साडी से कपड़ा फालकर भगवान् कृष्ण के हाथ में बांधा और रक्त को बहने से रोक लिया इसी बंधन के ऋणी भगवान् कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा दुःशासन द्वारा द्रौपदी के चीरहरण के समय की थी।
एक मुख्य कथानुसार एक बार बारह वर्षों तक देवता राक्षसों से युद्ध जीत ना सके और दैत्यराज ने तीनो लोकों पर कब्जा किया और स्वयं को भगवान् घोषित कर दिया। फिर गुरुदेव बृहस्पत ने श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल रक्षा का विधान नियुक्त किया जिसमे इंद्राणी ने इंद्रा के हाथ पर रक्षासूत्र बाँध कर इस रक्षा विधान को संपन्न किया और इंद्रा को युद्ध पर भेजा जिसके फलस्वरूप इंद्रा विजयी हुए तब से यह त्यौहार रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है जिसमे एक रेशम के कपडे में सरसों , सोना , केसर, चन्दन अक्षत और दूर्वा रखकर उसे एक रंगीन सूत की डोरी में बांधा जाता है जिसे रक्षा-सूत्र कहते हैं इसकी पूजा करके राजा, मंत्री, शिष्य इत्यादि की कलाई पर बांधा जाता है। आज के समय यह रक्षासूत्र केवल बहने ही अपने भाई की दाहिने हाथ की कलाई पर बांधती हैं और भाई अपनी बहनो को रक्षा का वचन देते हैं।
श्रावण पूर्णिमा के दिन ही मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की अज्ञानवश ह्त्या हो जाने के प्रायश्चित में राजा दशरथ ने व्रत रखा था जिससे उनके दुःख कुछ कम हुए थे।वेदाभ्यासी छात्रों के लिए आज का दिन वेदपारायण शुभारम्भ करने तथा ऋषियों के तर्पण का होता है। आज ही के दिन हयग्रीव तथा अगस्त्य ऋषि के अवतरण की चर्चा की जाती है।
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