पुत्रदा एकादशी | पवित्रा एकादशी
श्रावण शुक्ल एकादशी(22 अगस्त 2018)
तिथि आरम्भ : 21 अगस्त सुबह 5:17 पर
तिथि समाप्त : 22 अगस्त सुबह 7:40 पर
पारण समय : 23 को सुबह 5:50 से 8:25
एकादशी तिथि की वृद्धि है इसलिए एकादशी व्रत एवं तिथि22 अगस्त को मान्य होगी।
महत्व:
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पुत्र रत्न देने वाली होने के कारण पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान् विष्णु का ध्यान करके व्रत धारण करना चाहिए। रात्रि में स्थापित भगवान् के पास ही सोने का विधान है। अगले दिन वेद-पाठी ब्राह्मण को भोजन कराकर , दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही व्रत पारण (व्रत खोलना ) चाहिए। इस व्रत को धारण करने वाले निःसंतान मनुष्य को संतान प्राप्ति अवश्य होती है। इसे पवित्रा एकादशी भी कहते हैं इस दिन कथा सुनने या कहने मात्र से मनुष्य के सभी पाप नाश हो जाते हैं और सभी सुखो को भोगने योग्य हो जाता है। यह एकादशी विशेषकर संतान सुख की कामना रखने वाले मनुष्यों तथा वंश वृद्धि एवं सुख के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
पारण समय : 23 को सुबह 5:50 से 8:25
एकादशी तिथि की वृद्धि है इसलिए एकादशी व्रत एवं तिथि22 अगस्त को मान्य होगी।
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पुत्र रत्न देने वाली होने के कारण पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान् विष्णु का ध्यान करके व्रत धारण करना चाहिए। रात्रि में स्थापित भगवान् के पास ही सोने का विधान है। अगले दिन वेद-पाठी ब्राह्मण को भोजन कराकर , दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही व्रत पारण (व्रत खोलना ) चाहिए। इस व्रत को धारण करने वाले निःसंतान मनुष्य को संतान प्राप्ति अवश्य होती है। इसे पवित्रा एकादशी भी कहते हैं इस दिन कथा सुनने या कहने मात्र से मनुष्य के सभी पाप नाश हो जाते हैं और सभी सुखो को भोगने योग्य हो जाता है। यह एकादशी विशेषकर संतान सुख की कामना रखने वाले मनुष्यों तथा वंश वृद्धि एवं सुख के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
विधि:
सुबह स्नानादि के पश्चात भगवान् का स्मरण करके मूर्ती स्थापना इत्यादि करे , धूप-नैवेद्य इत्यादि से भगवान् की पूजा करे। भगवान् को फल , नारियल , लौंग इत्यादि अर्पित करें। विष्णुसहस्त्रनाम और व्रत कथा कहें या श्रवण करें उसके बाद अगले दिन किसी ब्राह्मण को दीप दान करके भोजन कराये तत्पश्चात पारण करें। पारण के लिए हरिवासर के समाप्त हो जाने का भी ध्यान रखें , द्वादशी तिथि का प्रथम चौथाई अवधि हरिवासर होती है। और व्रत पारण का सबसे उत्तम समय सुबह का होता है , मध्याहन में भी पारण करने से बचना चाहिए।
सुबह स्नानादि के पश्चात भगवान् का स्मरण करके मूर्ती स्थापना इत्यादि करे , धूप-नैवेद्य इत्यादि से भगवान् की पूजा करे। भगवान् को फल , नारियल , लौंग इत्यादि अर्पित करें। विष्णुसहस्त्रनाम और व्रत कथा कहें या श्रवण करें उसके बाद अगले दिन किसी ब्राह्मण को दीप दान करके भोजन कराये तत्पश्चात पारण करें। पारण के लिए हरिवासर के समाप्त हो जाने का भी ध्यान रखें , द्वादशी तिथि का प्रथम चौथाई अवधि हरिवासर होती है। और व्रत पारण का सबसे उत्तम समय सुबह का होता है , मध्याहन में भी पारण करने से बचना चाहिए।
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