महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि

श्री महाशिवरात्रि 

शिव

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (14 फरबरी 2018)

तिथि आरम्भ: 13 फरबरी रात्रि 10:34

तिथि समाप्त: 14 फरबरी रात्रि 12:47

शिवरात्रि व्रत 13 फरबरी को 
निशीथ काल (रात्रि 12:09 से रात्रि 01:01 तक) 

मुहूर्त अवधि = 51 मिनट 14 को 
पारण समय = सुबह 7:04 से दोपहर 3:20



विशेष :




फाल्गुन कृष्ण-चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः। ।





ईशान संहिता के अनुसार इसी अर्धरात्रि(निशीथ) में कोटि सूर्य की प्रभा के समान शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ। चतुर्दशी तिथि को भगवान् शिव की पूजा की जाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि को विशेषरूप से पूजन का विधान है।  अमावस्या की रात्रि चंद्र सूर्य के अभाव में पिशाचिनी शक्तिया अपनी चरम पर होती हैं, इसीलिए चतुर्दशी रात्रि को भगवान् शिव की पूजा करके उनको नियंत्रित किया जाता है।

पूजन विधि :
शिवपुराण अनुसार आज के दिन प्रातःकाल की संध्या आदि करके माथे पर भस्म का त्रिपुण्ड तिलक करके गले में रुद्राक्ष की माला धारणकर शिवालय जाकर भगवान् शंकर का विधिपूर्वक पूजन करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। संकल्प करने के लिए सामान्य विधि है , हाथ में जल , अक्षत , पुष्प , विल्वपत्र तथा चन्दन लेकर मन्त्र पढ़कर उसे छोड़दिया जाता है बाद में पढ़ने का मन्त्र है, "देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तुते।  कर्तुरमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।। तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।  कामाद्याः  शत्रवो मां वै पीड़ा कुर्वन्तु नैव हि।।"

यह श्लोक बहुत सुंदर है जिसमे भगवान् शंकर को बार-बार नमस्कार करके कहा जाता है कि हे प्रभु, हम आपका जिसमे भगवान् शंकर को बार बार नमस्कार करके कहा जाता है , हे प्रभु हम आपका यह शिवरात्रि व्रत करना चाहते हैं , हे देवेश्वर आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न संपन्न हो जाए तथा काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा ना दे।  इसके बाद घर आकर सारा दिन पंचाक्षरी (नमः शिवाय ) का जाप किया जाता है।  
इसके बाद  सारा दिन मौन रहकर उपवास रखा जाता है।  यथाशक्ति निराहार रहकर संध्यापूजन आरम्भ किया जाता है।  यह पूजा रात के चारो प्रहरों में अलग अलग की जाती है।  जो बीमार अशक्त अथवा वृद्ध है वे दिन में फलाहार क्र सकते हैं।  शाम में स्नानादि करके घर में नर्मदेश्वर महादेव (नर्मदा नदी से प्राप्त शिवलिंग ) अथवा ऐसे ही शिवलिंग हो तो वही अथवा शिवमंदिर में पूर्व या उत्तराभिमुख होकर भगवान् शंकर को दूध ,दही , घी , शहद तथा शक्कर से पहले अलग अलग बाद में सबको मिलाकर पंचामृत बनाकर उससे और अंत में शुद्ध जल से स्नान कराते हैं।  स्नान कराने से पहले संकल्प लेने का मन्त्र है "ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकला अभिष्ठ सिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये।" स्नान या अभिषेक करते समय वैदिक मंत्रो का पाठ करने का विधान है।  सामान्यतः रूद्र पाठ करना उत्तम है अन्यथा पंचाक्षरी तो है ही।  आज सामान्य फलफूल के अतिरिक्त विल्वपत्र , धतूरा तथा आक  के पुष्प विशेष रूप से चढ़ाये जाते हैं।  रुद्राभिषेक के बाद अर्घ्य्पुष्पांजलि और देते हैं जिसमे भगवान् के आठ नामो का उच्चारण किया जाता है।  ये नाम है भव , शर्व , रूद्र, पशुपति , उग्र, महान , भीम और ईशान।  फिर शंकर भगवान् की आरती करते है तथा रात्रि जागरण करते हुए चारो प्रहर की पूजा अवश्य करनी चाहिए।  इस व्रत  की महिमा का वर्णन संभव नहीं।  














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